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पश्चिमी चंपारण आज उस उजाले का स्थानांतरण हो गया है,वो रोशनी एक व्यक्ति नहीं, एक सोच थी जिला अधिकारी दिनेश कुमार राय।

एक उजाले का नाम था — पश्चिमी चंपारण जिलाधिकारी दिनेश कुमार राय

पश्चिम चंपारण की धरती पर आज एक अजीब-सी ख़ामोशी पसरी है। सड़कों पर रौनक है, मगर दिलों में सन्नाटा। चेहरे मुस्कुरा रहे हैं, पर आंखें नम हैं। एक ऐसा उजाला, जो बिना बिजली, बिना केरोसिन, बिना सौर ऊर्जा के पूरे जिले को रोशन करता था — आज उस उजाले का स्थानांतरण हो गया है।

उनकी सबसे बड़ी ताकत यह थी कि वो जनता को ‘जनता’ नहीं, ‘परिवार’ मानते थे। उनकी कार्यशैली में आदेश नहीं, अनुरोध होता था। फैसलों में कठोरता नहीं, संवेदना होती थी। वे सिर्फ एक प्रशासक नहीं थे, वे एक अभिभावक थे — बुज़ुर्गों के लिए बेटा, युवाओं के लिए मार्गदर्शक, बच्चों के लिए मुस्कुराता हुआ मसीहा।

दिन हो या रात, पर्व हो या बारिश, कोई आपदा हो या सामान्य दिनचर्या — राय साहब हर पल मैदान में मिलते थे। वे दफ्तर की कुर्सियों पर नहीं, गांवों की गलियों में दिखाई देते थे। सरकारी योजनाएं सिर्फ काग़ज़ों पर नहीं, हकीकत में ज़मीन पर उतरती थीं क्योंकि साहब खुद ज़मीन पर होते थे।

 

आज जब उनका स्थानांतरण हुआ है, लोग भावुक हैं। कोई आंखें पोंछते हुए दुआ दे रहा है, कोई सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीर साझा कर रहा है। जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक, किसान, विद्यार्थी — हर वर्ग, हर उम्र, हर भाषा, हर धर्म के लोग उनके साथ अपने रिश्ते को एक शब्द में नहीं, एक एहसास में समेट रहे हैं।

 

राय साहब के अंदर एक असीम ऊर्जा थी  लेकिन यह ऊर्जा उन्हें सिर्फ पद से नहीं, जनता के प्यार से मिलती थी। वो कहते थे:

“मेरे लिए प्रशासन सेवा है, सत्ता नहीं। पद एक जिम्मेदारी है, विशेषाधिकार नहीं।”

शायद इसी सोच ने उन्हें इतना विशिष्ट बना दिया।

 

यह स्थानांतरण केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है। यह एक युग का अंत और नए युग का प्रारंभ है। बहुत सारे अधिकारी आते हैं, चले जाते हैं, लोग उन्हें याद भी रखते हैं, मगर दिनेश कुमार राय जैसे अधिकारी लोगों के दिलों में घर बना लेते हैं। उनकी मौजूदगी में जिले के हर कोने में कुछ बदलता हुआ सा लगा — स्कूलों की दीवारें रंगीन हुईं, अस्पतालों के कमरों में दवाओं की महक आई, किसानों की आंखों में भरोसा लौटा, और बेटियों की मुस्कान में सुरक्षा की झलक दिखी।

 

कई लोगों ने कहा, “ऐसे साहब को खोना एक अपूरणीय क्षति है।”

लेकिन सच तो यह है कि ऐसे अधिकारी कभी खोते नहीं हैं। वे स्मृतियों में, प्रेरणाओं में, और हर उस युवा की सोच में जीवित रहते हैं, जो ‘नौकरी’ को ‘सेवा’ मानता है।

 

राय साहब की कार्यशैली, उनकी दृष्टि, उनका व्यवहार — यह सब हम सबके लिए एक उदाहरण है। उन्होंने साबित किया कि यदि दिल में सच्ची नीयत हो और सोच में जन-कल्याण हो, तो हर जिले को एक नई दिशा दी जा सकती है।

 

उनका जाना एक ‘स्थानांतरण’ नहीं, एक ‘स्थान परिवर्तन’ है।

उनकी सोच, उनका कर्म और उनका प्रेम — यहीं रहेगा।

हर किसी की ज़ुबान पर एक ही बात है —

“एक बार फिर साहब जैसे अधिकारी को देखना है, एक बार फिर चंपारण को वैसी ही रोशनी में जगमग करना है।”

संपादक शक्ति कुमार

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