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बाबा साहेब आंबेडकर इन तीन लोगों को मानते थे अपना गुरु,अपनी आत्मकथा में किया है ,जिक्र। 

दलित समाज के लोग भीमराव आंबेडकर को ‘बाबा साहेब’ कहकर श्रद्धा से याद करते हैं और उन्हें अपना मार्गदर्शक, प्रेरणास्रोत तथा गुरु मानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि डॉ. भीमराव आंबेडकर स्वयं किसे अपना गुरु मानते थे? इस बारे में उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मेरी आत्मकथा, मेरी कहानी, मेरी जुबानी’ में उल्लेख किया है.

आइए आपको बताते हैं.

भारत के संविधान निर्माता, महान विचारक और समाज सुधारक भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक स्थान पर हुआ था. उन्होंने न सिर्फ भारतीय संविधान की नींव रखी, बल्कि जीवन भर समाज में फैली असमानता, छुआछूत, जातिवाद, ऊंच-नीच और भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ीं डॉ आंबेडकर ने दलितों, वंचितों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उन्हें सामाजिक न्याय दिलाने की दिशा में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए।

दलित समाज के लोग आज भी उन्हें ‘बाबा साहेब’ कहकर श्रद्धा से याद करते हैं और उन्हें अपना मार्गदर्शक, प्रेरणास्रोत तथा गुरु मानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि डॉ. भीमराव आंबेडकर स्वयं किसे अपना गुरु मानते थे?

इस बारे में उन्होंने अपनी आत्मकथा, मेरी कहानी, मेरी जुबानी’ में उल्लेख किया है. इस आत्मकथा में आंबेडकर ने यह स्पष्ट किया है कि उन्होंने अपने विचारों और जीवन-दृष्टि को गढ़ने में जिनसे प्रेरणा ली, वे उनके असली ‘गुरु’ थे. उन्होंने कहा कि बुद्ध, कबीर और महात्मा फुले. ये तीन ऐसे क्रांतिकारी चिंतक और समाजसुधारक थे, जिन्होंने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।

 

अपने तीन गुरुओं के लेकर बी.आर आंबेडकर ने किताब में लिखा, ‘मेरा व्यक्तित्व इससे बना है. आज मैं जिस मुकाम पर पहुंचा हूं, उसके लिए मुझमें कुछ जन्मजात गुण होने चाहिए, किसी को ऐसा नहीं सोचना चाहिए. दरअसल मैंने अपने प्रयासों से यह ऊंचाई हासिल की है।

पहले शिक्षक बुद्ध

मेरे तीन गुरु हैं, उन्हीं की वजह से मेरे जीवन में क्रांति आई है. मेरी तरक्की का श्रेय उन्हें ही जाता है।

मेरे पहले गुरु गौतम बुद्ध हैं. दादा केलुस्कर मेरे पिता के विद्वान् मित्र थे. उन्होंने गौतम बुद्ध का चरित्र लिखा था. एक समारोह में केलुस्कर गुरुजी ने मुझे ‘बुद्धचरित’ भेंट किया. उस पुस्तक को पढ़ने के बाद मुझे एक अलग अनुभव हुआ. बौद्ध धर्म में ऊंच-नीच का कोई स्थान नहीं है . बुद्ध का चरित्र पढ़कर मेरा रामायण, महाभारत, ज्ञानेश्वरी आदि ग्रंथों से विश्वास उठ गया. मैं बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया. दुनिया में बौद्ध धर्म जैसा कोई धर्म नहीं है. यदि भारत को जीवित रहना है तो उसे बौद्ध धर्म स्वीकार करना होगा।

दूसरे गुरु कबीर,

‘मेरे दूसरे गुरु संत कबीर हैं. उनमें रत्ती भर भी भेदभाव नहीं था. वे सच्चे अर्थों में महात्मा थे. मैं गांधी को मिस्टर गांधी कहता हूं . मेरे पास कई पत्र आते हैं, जिनमें यह अनुरोध किया जाता है कि मैं गांधीजी को महात्मा गांधी ही कहूं. लेकिन मैंने उनके अनुरोध को महत्त्व नहीं दिया. मैं इन लोगों के सामने संत कबीर की शिक्षा रखना चाहता हूं।

तीसरे गुरु ज्योतिबा फुले

‘मेरे तीसरे गुरु महात्मा ज्योतिबा फुले हैं. मुझे उनका मार्गदर्शन मिला. उन्हीं के प्रयासों से इस देश में पहला कन्या विद्यालय खुला. मेरे जीवन को तथागत गौतम बुद्ध, संत कबीर और महात्मा ज्योतिबा फुले की शिक्षाओं ने आकार दिया है।

तीन पूज्य देवता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने अपनी आत्मकथा में आगे लिखा, ‘तीन गुरुओं की तरह, मेरे पास पूजा करने के लिए तीन देवता हैं. मेरी प्रथम पूज्य देवी विद्या हैं. बिना ज्ञान के कुछ भी संभव नहीं है . इस देश में बहुसंख्यक समाज निरक्षर है. बुद्ध को ब्राह्मणों द्वारा शूद्र कहा गया, लेकिन बौद्ध धर्म में कोई जाति नहीं है और शिक्षा अर्जित करने का कोई निषेध नहीं है. मनुष्य को भोजन की तरह ज्ञान की आवश्यकता होती है.  आज देश में 50 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं. ब्रह्मदेश में बौद्ध धर्म है, वहां 90 प्रतिशत लोग शिक्षित हैं. हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के बीच यही अंतर है।

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